रविदास जयंती: 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' दोहे से संत रविदास ने दी समाज ...
गुरू रविदास जी का जन्म काशी में हुआ था। उनके पिता का नाम संतो़ख दास (रग्घु) और माता का नाम कलसा देवी बताया जाता है। रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। वे अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे।
उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे।
प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रविदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से bhaga दिया। रविदास जी पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे।
स्वभाव
उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से समय तथा वचन के पालन सम्बन्धी उनके गुणों का पता चलता है। एक बार एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का मैंने वचन दे रखा है। यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो वचन भंग होगा। गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा ? मन जो काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है। मन सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। कहा जाता है कि इस प्रकार के व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गयी कि - मन चंगा तो कठौती में गंगा।
रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।
वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।
श्री रविदास जी की आरती - SHRI RAVIDAS JI KI AARTI
श्री रविदास जी की आरती इस प्रकार है:
नामु तेरो आरती भजनु मुरारे |
हरि के नाम बिनु झूठे सगल पसारे || रहउ०
नाम तेरा आसानी नाम तेरा उरसा,
नाम तेरा केसरो ले छिटकारे |
हरि के नाम बिनु झूठे सगल पसारे || रहउ०
नाम तेरा आसानी नाम तेरा उरसा,
नाम तेरा केसरो ले छिटकारे |
नाम तेरा अंभुला नाम तेरा चंदनोघसि,
जपे नाम ले तुझहि कउ चारे |
जपे नाम ले तुझहि कउ चारे |
नाम तेरा दीवा नाम तेरो बाती,
नाम तेरो तेल ले माहि पसारे |
नाम तेरो तेल ले माहि पसारे |
नाम तेरे की जोति जलाई,
भइओ उजिआरो भवन समलारे |
भइओ उजिआरो भवन समलारे |
नाम तेरो तागा नाम फूल माला,
भार अठारह सगल जुठारे |
भार अठारह सगल जुठारे |
तेरो किया तुझही किया अरपउ,
नामु तेरा तुही चंवर ढोलारे |
नामु तेरा तुही चंवर ढोलारे |
दस अठा अठसठे चार खाणी,
इहै वरतणि है संगल संसारे |
इहै वरतणि है संगल संसारे |
कहै रविदास नाम तेरो आरती,
सतिनाम है हरि भोग तुम्हारे |
सतिनाम है हरि भोग तुम्हारे |
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